Thursday 29 December 2011

सीधी सी बात

ये भारी शब्द
उलझी जुबां
रहस्यमयी बाते ,
मेरी कहाँ 

मेरा सच तो ये है
कि
मेरे लिए
तुम्हारी ऑंखें,
बस ऑंखें हैं
झील या समंदर नहीं.
तुम्हारी मुस्कान प्यारी है
पर ये कोई नदी या अम्बर नहीं



तुम्हारा चेहरा,
मुझे परियों की याद नहीं दिलाता
और
तुम्हे छू कर
मुझे ज़िन्दगी पूरी होने का एहसास नहीं हो जाता



होंठ गुलाब या अलफ़ाज़ शराब नहीं हैं
कुछ चांदनी या महताब नहीं हैं


तुम
एक लड़की हो.
सिर्फ
एक लड़की .
जिससे मै उसी तरह प्यार करता हूँ
जैसे एक लड़का   एक लड़की से करता है.
मेरा प्यार
बस प्यार है
उलझे और न समझ में आने वाले
लफ़्ज़ों का आढा टेढ़ा हिसाब नहीं
ये गुज़ारिश है तुमसे
मेरे प्यार को
बस प्यार मान लो
तराजू में तुलने वाली फलसफे की किताब नहीं


मेरे लिए
ये सवाल ए अस्मत नहीं है
तुम्हारी तरह मुझमे
कविता कहने की हिम्मत नहीं है
         

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