ऐसा नही है कि मोहनदास का
घर मे अपमान होता था. या उसका होना उसकी बहू और बेटे को चुभता था. बात सिर्फ इतनी
थी कि मोहन दास के लिए किसी के पास वक्त नही था. कितनी किताबें मैग्ज़ीन पढे ,
कितना रेडियो सुने और कोई बात करे भी तो उससे क्या बात करे. हाल चाल पूछा , किसी
चीज़ की ज़रूरत हुई तो कह दी. और क्या कहे. सुबह शाम पार्क मे चला जाता और दिन भर
बैठ कर वो किताबे पढता जिनसे उसे अब ऊब होने लगी थी. वह भी अन्दर ही अन्दर समझ
जाता था जब बेटा बहू उसके साथ पांच मिनट बैठने के बाद इधर उधर देखने लगते थे.
उन्हे कोई झूठा बहाना बनाना ना पडे , इसलिए मोहन दास खुद ही कह देता था.
“ अच्छा , अब मुझे सोना है
, तुम जाओ अपना काम करो ”
घर मे सिर्फ उसका पोता था
जिसके पास उसके साथ बात करने के लिए वक्त होता था. 16 साल का लक्की. लेकिन वह भी
करता नही था. स्कूल से आने के बाद , बैग
फेंक कर वीडियो गेम खेलना या फेस बुक करना इतना ज़रूरी नही था कि अपने कमरे मे सुबह
से अकेले बैठे अपने दादा से बात ना कर सके. लेकिन लक्की के लिए ये ज़रूरी था. दादा
उसके लिए दुनिया के सबसे बोरिंग इंसान थे जिनके बारे मे उसे सिर्फ इतना पता होता
था कि वो सो रहे हैं या जाग रहे हैं. उसे लगता था कि दादा शायद हमेशा ही ऐसे रहे
होंगे. इतने ही बोरिंग , ऐसी ही पूराने ज़माने की बातें करने वाले. लोगों को आते
जाते बस देखते रहने वाले. किताबों मे सिर गडाए ऊंघते
रहने वाले. दादा शायद पैदा ही बूढे हुए होंगे.
अगर एक लाईन मे कहूं तो मोहन
और लक्की की कभी दोस्ती नही हो पाई. कभी अगर मोहनदास ने खुद आगे बढ कर लक्की से
दोस्ती करनी चाही भी तो बात नही बनी. लक्की मोहन की पूरानी और बोरिंग कहानियां समझ
नही पाता था. वो मोहन से बात करने के लिए के देर तक एक जगह बैठा नही रह सकता था.
उसे मोहन का दुनिया के भविष्य और भूतकाल की तुलना करते रहना तो कतई पसन्द नही था.
मोहन को भी लक्की की बातें बेतुकी लगती थी. उसे लक्की के देर तक सोते रहने पर
गुस्सा आता था. और जब भी मोहन उसे कुछ बताता लक्की का गूगल पर जाकर फेक्ट को
रीकनफर्म करना उसे चिढा देता था. जैसे गूगल दादा से ज़्यादा जानता हो. होते होते
बात यहां तक आ पहुंची थी कि इस घर मे मोहन अगर किसी से सबसे कम बोलता था तो वो था
लक्की. इस दूरी की वजह से ना तो मोहन ने लक्की को बडे होते देखा था और लक्की ने
मोहन को बूढे होते.
“ मुझे तो लगता है , इसमे
तुम्हारी ही गलती है मोहन दास . तुम उसे अपनी किताबी कहानियां सुना कर पकाते
होंगे. वो तो बच्चा है , पर तुम तो समझदार हो. उस से उसकी तरह बात करोगे तभी तो वो
तुमसे बात कर पाएगा. ”
पार्क मे बैठ कर मोहन दास
का दोस्त देर से उसे समझा रहा था. आज जब पार्क से मोहन दास वापस गया वह ये सोच कर
गया कि लक्की से दोस्ती करेगा.
आज जब लक्की स्कूल से आया
तो मोहन दास अपने कमरे मे नही , ड्राईंग रूम मे बैठा था. लक्की मोहन को ड्राईंग
रूम मे देख कर कुछ हैरान हुआ. लेकिन उसने कुछ पूछा नही. वह सीधा अपने कमरे मे गया
, बैग फेंका . रसोई मे गया , फ्रिज से पानी पिया. जूते उतार कर फर्श पर फेंके.
जूते फेंकते ही ध्यान आया कि दादा इस तरह् जूते घर मे फेंकने पर टोकते हैं. लेकिन
आज सामने ही बैठा होने के बावजूद भी दादा ने नही टोका. लक्की को चक्कर ज़्यादा समझ
मे नही आया लेकिन उसने उन्हे टोका नही. और अपने कमरे मे चला गया. मोहनदास को कुछ
अजीब लगा. रोज़ लक्की स्कूल के बाद अपने कमरे मे नही जाता था , बल्कि ड्राईंग रूम
मे बैठता था जहां आज मोहन बैठा था. जब लक्की मोहन के पास आकर नही बैठा तो मोहन खुद
ही उठ कर लक्की के कमरे मे चला गया. बैड पर लैपटोप खोल कर बैठा लक्की मोहन को देख
कर कुछ हैरान हुआ. मोहन के हाथ मे एक गिफ्ट था.
“ मै तुम्हारे लिए कुछ लाया
हूं.” कहते हुए मोहन के चेहरे पर मुस्कान थी.
“ क्या है ? ” गिफ्ट को दादा के हाथ से लेते हुए
लक्की ने पूछा.
पैकेट खोला तो , और उसमे
रखी दो वीडीयो गेम्स की सी डी पर को उलटने पलटने के बाद लक्की के मुन्ह से निकला
“ कोंट्रा ”
“ अब भई नाम तो मुझे नही
पता क्या हैं , भारी सी बन्दूक लिए इस पर दो आदमी छपे दिखाई दिए तो मै ले आया. ऐसी
ही तो खेलते हो ना तुम. ” लक्की के बैड पर बैठते हुए मोहनदास ने लक्की से कहा. उसे
यकीन था कि लक्की को तोहफा पसन्द आया है. वह बस लक्की के चेहरे पर एक मुस्कान ढूंढ
रहा था.
“ इसकी सी डी उठा लाए. हैं
ये गेम्स पहले से मेरे पास. नेट से डाउनलोड हो जाती हैं ऐसी गेम्स , मुझे यूं ही
पैसे दे देते ज़्यादा थे तो. ” कहते हुए लक्की ने सी डी वापस कर दी.
लक्की की ये प्रतिक्रिया
होगी, मोहनदास ने उम्मीद नही की थी. लेकिन उसने झूठी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए
कहा ,
“ अच्छा , यार चलो पैसे भी
ले लेना. लेकिन ये गेम्स मुझे तो खेलनी नही आती , तो सोचा आज तुम्हारे साथ
खेलूंगा. मुझे एक बार थोडा सा सिखा दो , चैलेंज करता हूं हरा नही पाओगे. ”
लक्की को समझ नही आ रहा था
कि दादा जी अचानक ऐसा बर्ताव क्यूं कर रहे थे.
“ मुझे नही खेलना ” तीन
शब्दों मे लक्की ने अपनी बात खत्म की.
“ लेकिन क्यूं नही खेलना ,
रोज़ तो तुम स्कूल से आकर खेलते हो. ”
“ मन नही है आज ” बात उसी
तरह फिर खत्म हुई , बस शब्द इस बार चार थे. लक्की की उंगलियां लैपटोप पर तेज़ी से
चल रही थी. वह किसी के साथ फेसबुक पर चैट कर रहा था. मोहन दास उसके सामने बैठा ,
उसी के बैड पर. गिफ्ट मे लाई सी डी हाथ मे पकडे. सोचते हुए कि खत्म हुई बात को
कहां से शुरू करूं. शुरू करूं भी या नही. कुछ देर इसी तरह बैठा रहने के बाद जब
मोहनदास को लगा कि सचमुच बात अब खत्म हो चुकी है तो बैड से उठते हुए उसने कहा
“ ठीक है तुम आराम करो ”
लक्की ने की तरफ से कोई
जवाब नही. उसने लैपटोप से चेहरा उपर करके भी नही देखा.
मोहनदास वापस अपने कमरे मे
चला गया. उन्ही पूरानी दीवारों , किताबो , बिस्तर और पूरानी यादों के बीच.
“ अमा यार मोहनदास तुम भी
अधीर हो जाते हो. पीढियों का फासला है ये , और तुम समझते हो कि एक दिन मे दूर हो
जाएगा. कुछ गेम्स की सी डी देकर. कुछ वक्त लगेगा. लेकिन मुझे यकीन है कि ये फासला
मिट सकता है. ” पार्क के उस बेंच पर बैठे हुए , दोस्त ने फिर समझाया. मोहनदास इस
बात का क्या जवाब दे उसे नही पता था. वह कुछ नही बोला और चुप रहा. एक ठंडी हवा का
झोंका आया. मोहनदास को अच्छा लगा. मन हुआ कि कुछ देर और यहां बैठे लेकिन ध्यान आया
कि अन्धेरा हो आया है. कुछ देर बाद उसका दोस्त घर चला जाएगा. उसे भी घर जाना होगा.
जहां वह जाना नही चाहता. जहां अब उस घुटन होती है. जहां अब उसे नीन्द नही आती. ऐसा
क्यूं नही होता कि यूं ही कोई ठंडी हवा का झोंका मोहन को अपने साथ ले जाए. फिर
मोहन का नाम और निशान तक किसी को नज़र ना आए. जैसे मोहन कभी था ही नही. ये सब सोचते
हुए मोहनदास उठ खडा हुआ घर जाने के लिए.
छुट्टी का दिन है और घर मे
लक्की और सिर्फ मोहनदास. लक्की रसोई मे कुछ कर रहा था.
“ क्या कर रहे हो , नौजवान
? ” रसोई के दरवाज़े पर खडे होकर मोहन ने लक्की से पूछा.
“ मम्मी लेट आएंगी ,
उन्होने कहा है कि खुद कुछ बना कर खा लेना और दादा जी को भी खिला देना. किसी होटल का मेन्यू कार्ड ढूंढ रहा हूं कुछ
ऑर्डर कर लेते हैं , मै पिज़्ज़ा ले रहा हूं आप क्या खाएंगे ”
मोहनदास हंसा , “ तुम मुझे
क्या खिलाओगे , आओ मै तुम्हे खिलाता हूं. हटो ज़रा , बताओ मुझे क्या क्या है घर मे
, मै बनाता हूं कुछ तुम बस मेरी मदद करो. ”
“ आपको बनाना आता है ? ”
“ बनाना आता है ? आत्माओं
को बुला सकता तो आज तुम्हारी दादी की आत्मा को धरती पर बुलाता और उनसे पूछते तुम ,
कैसा खाना बनाना आता है मुझे. ” मोहन की आवाज़ मे एक पूरानी याद थी और थोडा सा जोश.
“ ग्रेट , तो प्लीज़ आप बनाओ
मै अपने कमरे मे हूं. ” कह कर लक्की
जाने लगा.
“ अरे रुको रुको रुको
नौजवान , खाना सिर्फ बनाना नही , उसे बनते देखना भी स्वादिष्ट होता है. तुम कहीं
जाओ मत , रुको और मेरी मदद करो. ”
लक्की रुक गया. दादा जो
बोलते वह कर देता. हालांकि उसे काफी बॉरिंग लग रहा था. रसोई मे खडे रहना और उपर से
दादा का ज़बरदस्ती फ्रेंडली होने की कोशिश. लेकिन उसने किसी तरह डेढ घंटा झेल लिया.
खाना वाकई बहुत स्वादिष्ट
बना था. मिक्स वेज , रोटियां , साग , रायता और सबसे स्वादिष्ट तो थी लहसुन की
चटनी. जो मोहन दास ने इंस्ट्रक्शंस देकर लक्की से ही बनाई थी.
“ ह्म्म्म ... its really amazing .
” रोटी की पहली कोर मुन्ह मे डालते ही लक्की के
मुन्ह से निकला.
मोहन दास को इसी तारीफ का
इंतज़ार था. उसे वाकई बहुत खुशी हुई. इतने सालों बाद भी वह खाना बनाना भूला नही था.
वह लक्की की से बात करने लगा. लक्की को अब अब बात करना उतना मुश्किल नही लग रहा
था. मोहन के पूछने पर उसने बता दिया कि पढाई अच्छी चल रही है और स्कूल अच्छा है.
ये भी कि कल उसके स्कूल मे एक थीम पार्टी है. थीम है रेट्रो. जिसमे उसे पूराने
स्टाईल के कपडे पहन कर जाना है. उसे कुछ पुराने कपडे तो मिल गए हैं लेकिन कुछ
अधूरा सा लग रहा है . वह अपने लुक के साथ पूरी तरह खुश नही है. मोहन के चेहरे पर
मुस्कान आ गई. लक्की की प्रोब्लम का सोल्यूशन उसके पास मौजूद है.
खाने के बाद मोहन लक्की को
अपने कमरे मे लेकर गया और उसे बैड के नीचे से एक पूराना सन्दूक निकालने को कहा.
सन्दूक मे से निकली , एक चाबी वाली पॉकेटवॉच . एक पुराना मफलर. कुछ किताबे , एक
छोटा बक्सा. कुछ खत और सबसे नीचे रखी थी एक ब्राउन कलर की गॉल्फ कैप. मोहन ने उस
कैप को बहुत प्यार से छुआ , पुरानी हो गई थी. कुछ सलवटें पडी थी और थोडा सा कोने
से रंग उड गया था. कैप को हाथ मे लेते ही जैसे हज़ार यादें आंखों के सामने तैर गई.
हाथों से उसकी सलवटें हटाई , और ज़रा सीधा करके उसे लक्की के सर पर रख दिया.
“ o man , this is perfect ” . लक्की ने कुछ खुशी से कहा.
“ बहुत खास है टोपी , किसी
ने गिफ्ट की थी. सम्भाल कर रखना और अपनी पार्टी के बाद मुझे वापस लाकर देना. ”
Sure , definitely .
लक्की की रेट्रो लुक पूरी
हो गई थी. टोपी लेकर वह वापस चला गया. मोहन दास ने सन्दूक मे एक एक चीज़ वापस डाली
, सन्दूक बन्द किया और उसे वापस अपने बैड के नीचे धकेल दिया.
उस रात मोहन दास उन हज़ारों
यादों से बाहर नही निकल सका , जो टोपी को छूते ही उसके आंखों के सामने तैर गई थी.
उस रात मोहन की उम्र 74 साल नही 22 साल हो गई थी. और वह वापस जा पहुंचा था याद शहर
. जहां उसने तीन साल रह कर ग्रजुएशन की थी. और जहां उसकी मुलाकात हुई थी , सपना
से.
सपना मोहन का मिलना किसी भी
फिल्म जैसा नही था. किसी भी कहानी जैसा नही था. बल्कि ज़िन्दगी जैसा था. किसी दोस्त
के घर मे पहली बार मिले थे. एक बार मिलना ही काफी था और सपना का चेहरा मोहन के दिल
और दिमाग पर इस तरह छा गया था कि वह हमेशा उसके बारे मे सोचता रहता था. पहली बार
घर से बाहर रह कर पढ रहा था और पहली बार ही प्यार मे पडा था. सपना मोहन के दिल की
बात समझ चुकी थी लेकिन जान बूझ कर ना समझ बनी रहती थी. वह कन्या महाविदयालय मे
पढती थी. मोहन उसके कॉलेज के सामने रोज़ तब तक बैठा रहता था जब तक सपना को देख नही
लेता था. एक दिन एक दोस्त से अच्छी सी हैंड राईटिंग मे खत लिखवाया , एक कविता
लिखवाई और सपना को कॉलेज से बाहर रोकते हुए दे दिया.
“ मोहन मै जानती हूं इस खत
मे क्या लिखा होगा. लेकिन यकीन करो ये खत तुम मुझे ना दोगे तो अच्छा रहेगा.
क्यूंकि मै तुम्हारी नही हो सकती. कोई उम्मीद भी मत लगाओ ”
“ तुम मेरी मत होना , लेकिन इस खत को अपना कर
लो. ” मुस्कुरा कर मोहन ने कहा.
सपना ने खत ले लिया. दोनो
मिलने लगे. अगले एक साल तक मिलते रहे और छुप छुप कर बात करते , रहे. और आखिर वही
हुआ , जिसके लिए सपना ने मना किया था. मोहन के मन मे उम्मीद जाग चुकी थी. उसका कॉलेज खत्म हो गया था.
वह याद शहर छोड कर जा रहा
था. और सपना को समझाने की कोशिश कर रहा था. वह ज़िन्दगी भर याद शहर मे रहना चाहता
था. सपना के साथ जीना चाहता था. लेकिन सपना की लाख मजबुरियां और मोहन की किस्मत.
याद शहर को आखिरी बार सलाम
करने के बाद जब वह स्टेशन पहुंचा तो सपना दौडती हुई उस से मिलने आई.
“ तुम जा रहे हो , लेकिन मै जाने से पहले तुम्हे
बता देना चाहती हूं , मै तुम्हे जितना प्यार करती हूं उतना तुम भी मुझे नही करते.
लेकिन मै तुम्हारी नही हो सकती. मै तुम्हे हमेशा याद करुंगी. जाने से पहले तुम्हे
कुछ देना चाहती थी. और कुछ नही सूझा , ये गोल्फ कैप लाई हूं. तुम पर खूब फबेगी. शायद
ज़िन्दगी मे कभी फिर मिले , तब तुम ये कैप पहन कर आना. ”
ट्रेन स्टेशन से चल पडी.
आंखों मे आंसू और सर पर सपना की दी गोल्फ कैप लिए मोहन रोती हुई सपना की ओर हाथ
हिलाता हुआ , चला गया.
शादी की. नौकरी की. बच्चे
हुए. और ना जाने ज़िन्दगी मे कितने लोग मिले. लेकिन सपना फिर दोबारा नही मिली. मोहन
ने उस टोपी को सम्भाले अपने पास रखे रखा. अब जब नौकरी नही , पत्नी नही है , बहुत
से लोग नही हैं. तब भी उसके पास सिर्फ ये एक टोपी है जो वो उम्मीद है जिसे जगाने
से सपना ने मना किया था.
इन्ही यादों मे रात गुज़र
गई. सुबह हुई तो मोहन अच्छा महसूस कर रहा था. लक्की स्कूल जा चुका था. स्कूल के
बाद वो थीम पार्टी मे जाने वाला था. वो टोपी साथ लेकर गया था. मोहन के मन मे एक और
उम्मीद जगी थी , लक्की अब शायद दोस्त बन गया है. वह खुश था.
“ देखा , धीरज रखना था बस.
अब हो गई है तुम्हारी दोस्ती तुम्हारे पोते से. अब तुम्हे घर जाना भी लगेगा और घर
रहना भी. ”
दोस्त ने शाम को पार्क मे
मोहन से कहा. उस दिन वाकई मोहन घर कुछ उत्साह से गया. शायद लक्की आ गया होगा. उस
से पूछूंगा थीम पार्टी कैसी रही उसकी.
लेकिन घर पहुंचा तो लक्की
अभी तक आया नही था. मोहन इंतज़ार करने लगा. उसे एक तरकीब सूझी , उसने लक्की का
लैपटोप खोला. फेस बुक मे नया अकाउंट बनाया और सबसे पहली फ्रेंड रेक्वेस्ट भेजी
लक्की को.
8 बज चुके थे. सब लोग खाना
खा चुके थे. दरवाज़े की घंटी बजी. मोहन ने दरवाज़ा खोला. बाहर लक्की खडा था. पूराने
ज़माने के कपडे पहने. लेकिन सर पर टोपी नही थी. शायद बैग मे होगी. घर आते ही टोकना ठीक
नही. मोहन ने सोचा. लक्की अन्दर आ गया.
कैसी रही तुम्हारी थीम
पार्टी नौजवान. , मोहन ने उत्साह से पूछा.
ठीक थी. कह कर लक्की अन्दर
चला गया.
मोहन ड्राईंग रूम मे बैठ
गया. शायद कुछ थका है , थोडा सांस ले ले फिर बात करता हूं. मोहन ने सोचा.
लक्की ने मुन्ह हाथ धोए.
कपडे बदले. मम्मी को बताया कि वो खाना खाकर आया है. और कमरे मे चला गया. मोहन जैसे
उसे दिखाई ही नही दिया.
कुछ देर बाद मोहन खुद उठ कर
उसके कमरे मे गया. लक्की बिस्तर ठीक कर रहा था.
“ अरे यार तुम तो बात ही
नही कर रहे. मै तो इंतज़ार मे बैठा था कि तुम आओगे , मुझे थीम पार्टी की बातें
बताओगे. कौन क्या पहन कर आया था. तुम सबको कैसे लगे. और तुम्हारी गोल्फ कैप पर
लडकियां मर मिटी या नही. ”
“ वो गुम हो गई मुझसे ” कह
कर लक्की लेट गया.
मोहन एक सेकेंड के लिए चुप
हो गया. पहले उसे लगा लक्की उसे छेड रहा है , वो ऐसा कैसे कर सकता है ? लेकिन अगले
ही पल उसे एहसास हो गया कि लक्की मज़ाक नही कर रहा था.
“ गुम हो गई ? ” मोहन ने
पूछा
“ हां. ” और कुछ भी कहना लक्की ने ज़रूरी नही समझा.
“ गुम हो गई मतलब , कैसे
गुम हो गई ? ” मोहन की आवाज़ मे बेचैनी थी.
कहीं गिर गई. कह कर लक्की
ने आंखे बन्द कर ली.
अरे लेकिन कहां गिर गई.
कैसे गिर गई ? तुमने ढूंढा नही ? तुम्हे मैने कहा था सम्भाल कर रखना , वापस करना
मुझे. फिर कैसे गिर गई.
“ अरे तो हो गया ना. गिर
गई. सॉरी बस ! और ला दूंगा नई. अब गिर तो गिर गई कहां ढूंढने जाउं.”
Irritate होकर लक्की ने मोहन के सारे सवालो के जवाब इस तरह दिए और
कोहनी के बल लेट कर मोहन को इस तरह देखने लगा कि आप अभी तक यहां क्यूं खडे हैं.
“ कह तो दिया सॉरी. ” लक्की
ने उसी अन्दाज़ मे कहा.
मोहन को समझ नही आया कि वह
और क्या कहे. कुछ देर चुप , शब्दहीन वहां खडा लक्की को देखता रहा और वापस अपने
कमरे मे जाने के लिए मुड गया.
मोहन सारी रात सो नही पाया.
आज जितना अकेला उसने पहले कभी महसूस नही किया था. उसके पास अब कोई इंसान नही था ,
लेकिन कुछ सामान तो था , जिसे वो अपना मानता था. अब वो भी जैसे अपना नही था. उसे
लक्की पर कोई गुस्सा नही था. वह बस दुखी था. अकेला था. उसे खुद के इस दुनिया मे
होने की वजह समझ नही आ रही थी. आंख बन्द किए सारी रात उस कुर्सी पर बैठा रहा. ना
जाने क्यूं आज अचानक उसका उस गोल्फ़ कैप को छूने का बहुत मन करने लगा था. वह याद
करने की कोशिश कर रहा था उस शाम को जब याद शहर छोड रहा था और सपना उसके लिए गोल्फ
कैप लेकर आई थी. लेकिन उसकी याद भी कुछ धुन्धली पड रही थी. वह याद करने की कोशिश
कर रहा था कि सपना ने कैप उसके हाथ मे देते वक्त और क्या कहा था सिवाए इसके की
ज़िन्दगी मे कभी मिले तो इसे पहन कर मिलना. कुछ उम्मीदों की बात की थी क्या ? नही वो तो तब कहा था जब खत देने गया था. तो और
क्या कहा था. लेकिन शब्द ही नही वह सपना का चेहरा भी भूल चुका था. वह सपना का
चेहरा याद करने की कोशिश कर रहा था , उसके माथे पर बल पडे थे. सब कुछ out of focus नज़र आ रहा था. उसे कुछ याद नही आ रहा था. जैसे सब कुछ दिमाग मे मिक्स हो रहा
था. फिर धीरे धीरे घबराहट के साथ कुछ गर्मी लगने लगी. पूरा शरीर पसीने से भीग गया.
बेचैनी बढ रही थी. अब उसे कुछ याद नही आ रहा था. फिर एक सुरंग दिखाई देने लगी.
गहरी अन्धेरी सुरंग. मोहन उस से गुज़र रहा था. सुरंग के उस ओर हल्की सी रोशनी थी.
धीरे धीरे सब शांत हो गया. अब गर्मी नही थी. ठंडी हवा का झोंका था जो उसे अपने साथ
लिए जा रहा था. उसके माथे के बल गायब हो गए. चेहरा पूरी तरह से शांत हो गया.
सुबह उठते ही लक्की ने इधर
उधर देखा. आज संडे था. स्कूल नही जाना था. उसने लैपटोप उठाया और फेस बुक खोला. जिसमे
उसके पास मोहन दास की फ्रेंड
रीक्वेस्ट पडी थी.
another sad ending :(
ReplyDeletebut really nice writing... i could actually picturise the whole thing :)