Thursday 20 July 2017

सुनो
मैंने एक ख्वाब का टुकड़ा तोड़ लिया है
इस टुकड़े में हम दोनों हैं
तुम चल रही हो हरी घास पर
नंगे पैर
मेरे पैर के निशानों में अपने पैर रखती हुई
हम पहुंचते हैं एक झरने के किनारे
चट्टानों से गिरता दुधिया पानी
और गिरते हुए पानी को भांप की सुरत
फिर उठते हुए देखती तुम्हारी बड़ी सी आखें
पानी के उस शोर में जब हमारे शब्द भी दब गए  
तुमने बस मेरा हाथ पकड़ा और सब कुछ कह दिया
बारिश के पानी का वो नमकीन स्वाद अब तक मेरी ज़बान पर है
जो तुमने और मैंने चखा था
ख्वाब के उस टुकड़े में
तुम देखती हो सितारों भरा आसमान और ज़िद करती हो
उन सितारों को पाने की
उन्हें तोड़ कर लाने की
मैं तुम्हें ले कर चलता हूँ
उन उड़ते हुए सितारों के बीच ...
तुम अपनी अंजुली में भर लेती हो एक सितारा और देखती हो उसे जगमगाते हुए
सितारों से खेल कर जब थक जाती हो तुम
तो सूरज आकर भर देता है अपनी सारी रोशनी तुम में
सुबह की सुनहरी धूप में चमकता हुआ तुम्हारा चेहरा मैं अपने हाथों में लेकर तुमसे कहता हूँ
मुझे तुमसे मुहब्बत है
तुम्हारी हंसी के साथ बरस जाती हैं शबनम की बूंदे
जो सो रही थी पेडों के पत्तों पर
और सारी कायनात खिलाखिला पड़ती है साथ तुम्हारे
झेंपा हुआ सा मैं दौड़ता हूँ तुम्हारी ही ओर
तुम्हारे आंचल की पनाह पाने को
लेकिन उस से पहले एक बादल तुम्हें भर लेता है अपनी बाहों में
अब तुम नहीं हो कहीं नहीं हो
या हो पर ओझल
घुल गई हो उस बादल में
बह रही हो इस हवा के साथ

या छिप गई हो कहीं इन वादियों में .... 

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