Thursday 29 December 2011

सीधी सी बात

ये भारी शब्द
उलझी जुबां
रहस्यमयी बाते ,
मेरी कहाँ 

मेरा सच तो ये है
कि
मेरे लिए
तुम्हारी ऑंखें,
बस ऑंखें हैं
झील या समंदर नहीं.
तुम्हारी मुस्कान प्यारी है
पर ये कोई नदी या अम्बर नहीं



तुम्हारा चेहरा,
मुझे परियों की याद नहीं दिलाता
और
तुम्हे छू कर
मुझे ज़िन्दगी पूरी होने का एहसास नहीं हो जाता



होंठ गुलाब या अलफ़ाज़ शराब नहीं हैं
कुछ चांदनी या महताब नहीं हैं


तुम
एक लड़की हो.
सिर्फ
एक लड़की .
जिससे मै उसी तरह प्यार करता हूँ
जैसे एक लड़का   एक लड़की से करता है.
मेरा प्यार
बस प्यार है
उलझे और न समझ में आने वाले
लफ़्ज़ों का आढा टेढ़ा हिसाब नहीं
ये गुज़ारिश है तुमसे
मेरे प्यार को
बस प्यार मान लो
तराजू में तुलने वाली फलसफे की किताब नहीं


मेरे लिए
ये सवाल ए अस्मत नहीं है
तुम्हारी तरह मुझमे
कविता कहने की हिम्मत नहीं है
         

Thursday 15 December 2011

मुझे मंजूर है




मैं ये नहीं चाहता ,
    ये रिश्ता खुरदुरा हो जाये

लगे चुभने चाँद आँखों में
   ख्वाब पूरा हो जाये

नमक आँखों में टपके,
   जज़्बात बर्फ रह जाये

 गर्म साहिल, दरिया का,
  अब्र राख बरसाए

याद में नश्तर से जैसे
  ज़हन में खून टपकाए

मुझे मंज़ूर है मेरे दोस्त ,
  जो हम कभी न मिल पाए

Monday 12 December 2011

हर रोज़




                                   ताश के पत्तों का एक घर हो गया हूँ
                                  
                                   हर रोज़
 
                                  एक एक पत्ता

                                  संभाल संभाल कर

                                  एक ऊपर एक

                                  डरता डरता रखता हूँ



                                  एक एक पत्ता मुट्ठी भींचे खड़ा रहता है
   
                                  ऊँगली टकरा गयी कोई,

                                  या सांस भी छू गयी

                                  तो बिखर जाऊंगा


                             
                                 मौसम को थामे

                                 वक्त दबा कर

                                लफ़्ज़ों को बांधे

                                के कुछ भी बदला

                                तो गिर जाऊंगा



                              सूरज ढलते ढलते

                              जब संभलता सा लगता है कुछ..


                       
                              कहीं से एक झोंका आता है  तेरी याद का
                      
                              और ढह जाता हूँ ........

                            


                                

Saturday 10 December 2011




हम रोज़ वहां पर मिलते हैं ,

मै सूरज की पहली किरण
वो चाँद की आखिरी झलक
कभी ना मिल पाने का श्राप लिए        .....

हम रोज़ वहां पर मिलते हैं

एक गहरी घनेरी झील में
दूसरा चटक धूप में भीगा हुआ
बस आवाजों से जुड़ते हैं


हम रोज़ वहां पर मिलते हैं

मेरा ख़्वाब उसकी हकीक़त ,
उसका जीवन मेरा स्वप्न 
जाग कर भी सोते हैं ,
हम कहाँ कभी संग होते हैं

एक किनारा दोनों का ,
बस एक सिरा दो दुनिया का ,
हम वहां पर जीया करते हैं

ख़्यालों की चट्टान पे बैठे
यथार्थ समेटते होते हैं

हम रोज़ अनंत में मिलते हैं ........
    

written  by --- उषा

Thursday 1 December 2011

अनोखे लाल की मोक्ष इच्छा

                                               
किसी को अपनी दिव्य शक्ति पर इतना अफ़सोस कभी नहीं हुआ होगा जितना अनोखे लाल को होता है. अनोखे ऐसा अनोखा बच्चा था जिसे 7  साल की उम्र में अपना पिछला जन्म याद आ गया था. याद आते ही डंका पीट दिया गया कि अनोखे पिछले जन्म में फलाने गाँव का रहने वाला था और इसके परिवार में फलाना फलाना लोग थे. तफ्तीश हुई तो सच पाया गया. अनोखे की अखबार में  फोटो छपी और अनोखे आस पास के हर गाँव में पहचाना जाने लगा. कुछ दिन इस जन्म और पिछले जन्म के परिवार में बातचीत भी हुई की अनोखे पर किसका हक़ है. फैसला हुआ कि अनोखे वर्तमान जन्म के परिवार के साथ रहेगा और चाहे तो कभी-कभी पिछले जन्म के परिवार से मिल लेगा. लेकिन अनोखे की कहानी में नया मोड़ आया जब 11 साल की उम्र में अनोखे को पिछले जन्म से भी पिछला जन्म याद आ गया. फिर तफ्तीश हुई साहब , फलाना गाँव और फलाना परिवार. सच्चाई पाई गयी. अनोखे के वर्तमान परिवार के लोग डर गए. इस कमबख्त को तो जन्म याद आते रहेंगे और ना जाने किस-किस जन्म के परिवार वाले इस पर हक़ जताना चाहेंगे. तो अनोखे को पढने विदेश भेज दिया गया. अनोखे जब 23 साल का हुआ तो अनोखे को एक कन्या से प्यार हो गया. दोनों ने शादी भी कर ली और वापस आकर घर बता दिया. गाँव में बवाल हो गया. इसलिए नहीं की प्रेम विवाह था. बल्कि इसलिए कि लड़की उसी गोत्र की थी , जो गोत्र अनोखे का पिछले जन्म में था. पंचायत हुई , सवाल ये कि क्या पिछले जन्म के गोत्र के मिलने से भी शादी नहीं हो सकती. बड़े बुजुर्गों  ने अनोखे को पत्नी का भाई घोषित कर दिया और शादी तुडवा दी. लोग अपने पिछले जन्मो के कर्मो का फल भुगतते हैं, अनोखे पिछले जन्म के गोत्र का फल भुगत रहा था .  अनोखे दुखी था . देवदास फिल्म के गाने भी गाए दो चार दिन . लेकिन कुछ साल बाद अनोखे को फिर प्यार हुआ. शादी की तैयारियां  शुरू हुई. अनोखे खुश था. पर किस्मत को कहाँ तक रोएगा , ये लड़की अनोखे के पिछले जन्म की बुआ के बेटे की  बेटी निकल आई. पंचायत हुई. अनोखे के प्रेम को एक बार फिर पंचायत ने छलनी कर दिया.  शादी टूट गयी और अनोखे का दिल भी. पर अनोखे हार मानने वालों में से नहीं था. तीसरी बार फिर दिल लगा बैठा. इस बार लड़की पिछले से भी पिछले जन्म के गोत्र की निकल गयी. अनोखे ने सर पीट लिया. उसे अफ़सोस हो रहा था उस दिन पर जब अनोखे ने सबको अपने पिछले जन्म के राज़ बताये थे. लेकिन इस तरह तो अनोखे कंवारा ही रह जाएगा. पंचायत ने फरमान सुनाया कि अनोखे का हक़ सिर्फ उस महिला पर बनता है जो अनोखे की पिछले जन्म में धर्मपत्नी थी. लेकिन अब तक वो काफी बूढी हो चुकी थी. अनोखे कंवारा नहीं मरना चाहता था. उसने तय किया कि यही सही. कंवारा मरने से तो अच्छा है. लेकिन अनोखे की खुशियाँ तब तार तार हो गयी जब पता चला कि पिछले जन्म की पत्नी का शादी से पहले जो गोत्र था , वो वही था जो अनोखे का वर्तमान जन्म में है. बेडा गर्क. पिछले जन्म में थे पर इस  जन्म में ये दोनों एक नहीं हो सकते. अनोखे आज तक कंवारा है. उसे अब मोक्ष चाहिए .