Saturday 10 December 2011




हम रोज़ वहां पर मिलते हैं ,

मै सूरज की पहली किरण
वो चाँद की आखिरी झलक
कभी ना मिल पाने का श्राप लिए        .....

हम रोज़ वहां पर मिलते हैं

एक गहरी घनेरी झील में
दूसरा चटक धूप में भीगा हुआ
बस आवाजों से जुड़ते हैं


हम रोज़ वहां पर मिलते हैं

मेरा ख़्वाब उसकी हकीक़त ,
उसका जीवन मेरा स्वप्न 
जाग कर भी सोते हैं ,
हम कहाँ कभी संग होते हैं

एक किनारा दोनों का ,
बस एक सिरा दो दुनिया का ,
हम वहां पर जीया करते हैं

ख़्यालों की चट्टान पे बैठे
यथार्थ समेटते होते हैं

हम रोज़ अनंत में मिलते हैं ........
    

written  by --- उषा

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