Saturday 16 November 2013

I am sorry dost ... मै कुछ नहीं कर सका


         

   बात  सितम्बर 2013 की है. मै एक फ़िल्म शूट के  सिलसिले में लखनऊ में था . रात के तकरीबन 9  बजे थे और हम एक ख़ास शॉट के लिए लोकेशन  तलाश रहे थे .  गाड़ी में मेरे अलावा ड्राइवर, कैमरामैन और लखनऊ के ही एक साथी, मनोज थे, जो लोकेशन ढूंढने में हमारी मदद कर रहे थे . गाड़ी एक चौंक के पास पहुंची जहां मुझे एक कुत्ते के रोने की हल्की - हल्की आवाज़ सुनाई दी . रात में किसी कुत्ते का रोना अस्वाभाविक नहीं है इसलिए मैंने  नज़रअंदाज़ कर दिया . लेकिन  गाड़ी जब  चौंक पर पहुँच कर रुकी तो मै वो आवाज़ नज़रअंदाज़ नहीं कर सका क्योंकि वो आवाज़ इतनी तेज़ थी कि कानोँ में चुभ रही थी . मुझे कुछ हैरानी हुई . मेरा कैमरामैन नीचे उतर कर लोकेशन देखने लगा. मै जब नीचे उतरा तो देखा कि चौंक के पास ही मांस की कुछ दुकाने थी.  दुकानो पर कहीं कहीं  जलते हुए बल्ब लटक रहे थे और कुछ फेरी वाले भी वहाँ खड़े थे . एक अजीब बात ये थी कि वहां मौजूद सारे कुत्ते कान खड़े कर सतर्क अवस्था में लगातार मांस की उस दुकान की ओर देख रहे थे जहां से उस कुत्ते के रोने की आवाज़ आ रही थी . मैंने ज़िंदगी में कभी किसी कुत्ते को इतना बुरी तरह रोते नहीं सुना था . उसका वो क्रंदन मुझे आज भी याद है .  अजीब सा डरावना माहौल था. उस कुत्ते की आवाज़ के अलावा और कोई आवाज़ नहीं थी . लोग आपस में ज़्यादा बात भी नहीं कर रहे थे . मैं एक पल के लिए ठिठका और समझने की कोशिश की . मुझे लगा कि शायद उस बेज़ुबान जानवर ने दुकान में से कोई मांस का टुकड़ा चुराने की कोशिश की होगी और दुकानदार उसे पीट रहा होगा . दुकान के अंदर होने के कारण हम उस कुत्ते को देख नहीं पा रहे थे, सिर्फ वो दर्दनाक क्रंदन उस जगह को भयावह बना रहा था . मैंने एक फेरी वाले से पूछा कि क्या बात है. लेकिन  " पता नहीं  " कह कर उसने बात ख़त्म कर दी और मुंह घुमा लिया . मैंने अपने साथी मनोज से पूछना चाहा. लेकिन इस से पहले मनोज कुछ समझते हम दोनों ने   " ठाक " की एक ज़ोरदार आवाज़ सूनी . इस आवाज़ के साथ ही कुत्ते का रोना अचानक बंद हो गया . अब  तक मनोज पूरा मामला समझ चुके थे . मै अभी भी कन्फ्यूज़ था कि जो कुत्ता अभी अभी इतना बुरी तरह रो रहा था वो एक झटके से चुप हो कैसे हो गया . मनोज ने मुझे " बताता हूँ " कह कर वापस गाड़ी में बैठने को कहा . मेरा कैमरामैन लौट आया था . गाड़ी वापस चल पड़ी थी . मनोज ने मुझे बताया कि सस्ती मांस की दुकानो पर बकरे के मांस में मिला कर कई बार लोग कुत्ते बिल्ली का मांस भी बेच देते हैं . इसके आगे कुछ कहने की ज़रुरत नहीं थी . सारी तस्वीर साफ़ थी . मै अंदर तक हिल गया था . मेरे ज़हन में तस्वीरें बनने लगी जिसमे दो चार लोग बुरी तरह एक कुत्ते को पकड़े हुए थे और एक आदमी हाथ में बड़ा सा मांस काटने वाला चाकू लिए कुत्ते की गर्दन को पकड़ने की कोशिश कर रहा था और वो लाचार ज़िंदगी के लिए चिल्ला रहा था. मदद मांग रहा था .  सुनने या पढ़ने में ये घटना शायद आपको उतनी दर्दनाक ना लगे लेकिन उस बेज़ुबान की मौत से पहले की वो चीखें अगर आपने सुनी होती तो शायद आप भी सिहर उठते .
मै शाकाहारी हूँ. इसलिए नहीं कि किसी बाबा का भक्त हूँ बल्कि इसलिए कि मै जानता हूँ दर्द क्या होता है.  मै किसी को शाकाहारी होने का ज्ञान नहीं देना चाहता . सवंदेनशील होने या जानवरों से प्यार करने के लिए नहीं कहना चाहता क्योंकि मै जानता हूँ कि मै किसी को बदल नहीं सकता . उस रात भी मै कुछ बदल नहीं सका था  . वहाँ होते हुए भी कुछ नहीं बदल सका सिवाय अपने कैमरामैन के डिसीज़न के. मेरे कैमरामैन को लोकेशन पसंद थी और वो चाहता था कि अगले दिन का शॉट हम वहीं लें. लेकिन मैंने उसके फैसले को ये कहते हुए बदल दिया कि हम ये शॉट यहाँ नहीं लेंगे . हम यहाँ फिर कभी नहीं आएँगे .





  

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