ये सभी कहानियां सत्य घटनाओं से ली गई हैं. इनमें लिखा एक एक शब्द कहीं किसी ने जिया है. ... प्रस्तुत है इसी श्रंखला की अगली कहानी....
तक़रीबन 9 साल का अरुण एक दिन जब स्कूल आता है तो टीचर उसे देख कर नाक
भौं सिकोड़ती है. अरुण के कपड़े इतने गंदे हैं कि टीचर, सुमन, उसे कहती कि जाओ घर
वापस और अच्छे कपड़े पहन कर आओ. अरुण कोई जिरह नहीं करता. चुपचाप वहां से चला जाता
है. उस दिन वो स्कूल वापस ही नहीं आया.
अगले दिन अरुण फिर स्कूल आता है. फिर से उसने वही कपड़े पहने हुए हैं.
इस बार टीचर को कुछ गुस्सा आता है.
“ तुम फिर से वही कपड़े पहन कर आ गए, तुम्हें कल वापस भेजा था ना.”
अरुण कोई जवाब नहीं देता.
“बच्चो तुम में से कोई अरुण के साथ बैठना पसन्द करेगा?” टीचर क्लास से
पूछती है.
सब बच्चे एकमत से जवाब देते हैं, “नहीं”.
अरुण वापस चला जाता है. कुछ देर बाद लौटता है. उसने अपने साईज़ से बड़ी
एक शर्ट पहनी है. और एक पैंट जो शायद किसी दूसरे बच्चे की निक्कर रही होगी. इन दो
कपड़ों के अलावा और कोई कपड़ा उसके बदन पर नहीं है. दिसम्बर की इस ठंड में सिर्फ़ इन
दो कपड़ों में अरुण को देख कर टीचर की रूह कांप जाती है. लेकिन इस बार वो अरुण को
कुछ नहीं कहती और क्लास में बैठने देती है.
फिर किसी से सुमन को अरुण के बारे में पता चलता है. अरुण गांव के सबसे
गरीब घर से आता है. परिवार में मां-बाप, दो बहनें और तीन भाई हैं. एक टूटा हुआ कच्चा
झोंपड़ा है. बाप पहले कभी-कभी मज़दूरी करता था. लेकिन फिर वो भी मिलनी बन्द हो गई.
मां, मीना, ने किसी तरह घर सम्भालने की कोशिश की. दूसरों के खेत में कुछ मज़दूरी या फसल
काटने का काम मिल जाता था तो कर लेती थी. लेकिन गांव वालों ने औरत का यह काम करना
अच्छा नहीं माना. सो वो इनकम भी बन्द हो गई. बाप डीप्रेशन में चला गया. नशा करने लगा.
लत लग गई. फिर धीरे धीरे मानसिक अवस्था बिगड़ गई. बरेली के मानसिक चिकित्सालय में
इलाज चल रहा है. लेकिन बिना पैसे कैसा इलाज चल रहा होगा, ये सब जानते हैं.
सुमन को अपनी ग़लती का अहसास हुआ. उसने नए कपड़े ख़रीद कर अरुण को दिए.
अरुण ने ले लिए. धन्यवाद नहीं बोला. कोई ख़ुशी भी ज़ाहिर नहीं की. बस ज़मीन में आंख
गडाए देखता रहा. लंच ब्रेक के बाद सुमन वापस क्लास में आई तो कपड़े मेज़ पर रखे थे.
अरुण क्लास में नहीं था. सुमन समझ गई कि उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची है. फिर कई
दिन तक स्कूल नहीं आया.
इसी दौरान स्कूल में मिड डे मील बनाने के लिए खाना बनाने वाली की
ज़रूरत पड़ी. सुमन ने मीना का
नाम रिकमेण्ड किया. मीना स्कूल में खाना बनाने लगी. दिखने में सुन्दर थी.
उम्र भी कोई ज़्यादा नहीं थी. लाख दुःख हों, लेकिन चेहरे पर दिखते नहीं थे.
मुस्कुराती रहती थी. 1000 रुपए महीना मिलता था. सुमन के पास बैठती थी तो उस से
अपने सुख-दुःख बांट लेती थी. लेकिन 1000 रुपए में घर कैसे चले. तो एक दफ़ा स्कूल के
हेडमास्टर से कुछ पैसे उधार ले लिए. ज़ाहिर है, पैसा लौटा नहीं पाई. एक सुन्दर औरत
जब पैसा उधार लेकर नहीं लौटा पाती, तो उम्मीद की जाती है कि किसी और तरह से लौटा
दे. फाईनली वही हुआ. वो पैसे किसी और तरह से लौटाए गए.
नहीं, हेडमास्टर ने कोई ज़बरदस्ती नहीं की. कोई दबाव भी नहीं डाला. ये
रेप या ब्लैकमेलिंग नहीं थी. जो हुआ दोनों की मर्ज़ी से हुआ. वो बात अलग है कि
हेड्मास्टर की जवानी के अय्याशी के किस्से सब लोग जानते थे. लेकिन इस पर्टिकुलर
केस में ये आपसी सहमति से हुआ.
और अब ये अक्सर होने लगा. कुछ पैसे मिल जाते थे तो घर चल जाता था.
बच्चों को सही वक़्त पर भोजन मिलने लगा. फिर एक सस्ता सा मोबाईल भी ले लिया. अब
अरुण भी अक्सर स्कूल में दिख जाता था. लेकिन हेडमास्टर से सम्बन्धों की बात अब
लोगों की ज़ुबान पर आने लगी. अरुण के चाचा और ताऊ ने ख़िलाफ़त की. घर की इज़्ज़त सड़कों
पर थी. मीना की नौकरी छुड़वा दी गई. वापस घर में बिठा दिया गया. सब कुछ फिर से वैसा
ही होने लगा. गरीबी. भूखो मरने की नौबत. लेकिन इस ग़रीब घर में भी अब एक चीज़ थी जो
नई थी. अलग थी. एक मोबाईल.
औरत के हाथ में मोबाईल भी बड़ी दिलचस्प चीज़ है. ना जाने कैसे लोगों
को नम्बर मिल जाता है. लोग फोन करते रहते हैं. सामने से औरत की आवाज़ आ जाए तो 50
बार फोन करेंगे. कोई फर्क नहीं पड़ता औरत किस उम्र, तबके, शहर या गली मोहल्ले की
है. वही होने लगा. मीना तो अनपढ थी. उसके हाथ से कभी कोई ग़लत नम्बर कहीं लग गया.
फिर उस रोंग नम्बर से फोन आने लगे. मीना भी बात करने लगी. सामने वाला जो भी था,
मोबाईल रीचार्ज भी करवा देता था. फिर उस रोंग नम्बर ने मीना की नौकरी लगवा दी.
नौकरी मिली बरेली के एक अस्पताल में. सफ़ाईकर्मी. नौकरी क्या दिलवाई,
पूरी तरह वेश्या बना दिया. अब वो वहीं रहने लगी. घर में पैसा भेजती रहती थी.
बच्चों को भोजन मिलने लगा. कपड़े मिलने लगे. कच्ची झोंपड़ी पक्की करवा ली. ये
परिवर्तन देख कर गांव वाले हैरान थे. अरुण की पढाई ठीक से चलने लगी. बरेली के
मानसिक चिकित्सालय में पति का इलाज ठीक से होने लगा.
लेकिन अब तक अरुण भी तक़रीबन 11 साल का हो चुका था. उसकी ज़िन्दगी में
दो साल का तजुर्बा और जुड़ चुका था. एक बदलाव और आया था. उसने माथे पर एक काला टीका
लगाना शुरू कर दिया था. 70s की फिल्मों के डाकू भवानी की तरह. एक दफ़ा सुमन ने
बच्चों से पूछा, बड़े होकर क्या बनोगे. अरुण ने बताया कि वो बड़े होकर डाकू बनना
चाहता है.
“ क्यों?” सुमन ने पूछा.
“क्योंकि डाकू अमीरों से पैसे लूटता है और ग़रीबों में बांटता है.”
“किसने बताया?”
“फिल्म में देखा” अरुण का जवाब था.
“क्या अमीर लोग बुरे होते हैं?”
“हां, बहुत बुरे.”
सुमन ने उस दिन समझाया कि फिल्में असली नहीं होती हैं और मेहनत करने
से अमीर बनते हैं. काम करने से अमीर बनते हैं.
लेकिन माथे से काला टीका नहीं हटा.
मीना एक दफ़ा स्कूल में आई. चेहरे पर रौनक थी. कपड़े अच्छे थे. मीना को
देख कर सभी टीचर्स इधर-उधर हो गईं. सभी मीना के कच्चे झोंपड़ी के पक्का होने की
कहानी जानते थे. सुमन ने भी नज़रअन्दाज़ करने की कोशिश की. लेकिन मीना ख़ुद सुमन के
पास आ गई और बात करने लगी.
“और क्या कर रही हो आजकल?” सुमन ने पूछने के लिए पूछ लिया.
“अस्पताल में नौकरी कर रही हूं. नौकरी क्या... सच बताउं तो, जिस गली
से गुज़र जाती हूं, 1000 – 500 रुपए मिल जाते हैं.” ईमानदारी से बात मीना ने बता दिया.
सुमन इस ईमानदार जवाब के लिए तैयार नहीं थी. उसे समझ नहीं आया अब आगे और क्या बात करे.
फिर ऐसा हुआ कि गांव वालों का आत्मसम्मान जाग गया. वो शहर गए और मीना
को गांव वापस ले आए. उसे घर में नज़रबन्द कर दिया गया.
कुछ ही दिनो में हालात वापस बदतर हो गए. पहले से भी बुरे. ग़रीबी फिर
से छा गई. अब ये एक घर था, जिसमें 5 भूखे बच्चे थे. एक बेरोज़गार वेश्या थी और एक
पागल आदमी था.
उस छोटे से डाकू ने अपनी भूख का एक बन्दोबस्त किया. वो लोगों के खेत
से आलू चुराता और 10-20 रुपए के बेच देता. घर के दूसरे बच्चों ने भी शायद ऐसा ही
कुछ बंदोबस्त किया होगा, लेकिन मैं जानता नहीं हूं.
ख़ैर, मीना कब तक घर में बन्द रहती. उसके मोबाईल के ज़रिए एक और आदमी से
उसकी दोस्ती हुई. आदमी पेशे से कसाई था. एक दिन मीना अपनी दो बेटियों के साथ उस
कसाई के साथ चली गई. फिर किसी ने उसके बारे में कभी कुछ नहीं सुना.
डाकू अरुण का क्या हुआ?
तीन भाई थे. तीन में से सबसे छोटा भाई, नानी के पास चला गया. अरुण भीख
मांगने लगा. एक दिन भीख मांगता हुआ सुमन के सामने आ गया. चुपचाप नज़र नीचे करके चला
गया. सुमन उसे देखती रह गई. ये वही बच्चा था, जिसने कभी मदद के रूप में मिले कपड़े
लेने से इंकार कर दिया था.
अरुण गांव छोड़ कर चला गया. किसी दूसरे गांव में जाकर भीख मांगने लगा.
गांव वालों को पता चला तो उन्हें बहुत बुरा लगा. अपने गांव का बच्चा किसी और गांव में
जाकर भीख मांग रहा था. गांव वाले जाकर उसे वापस ले आए. अरुण से कह दिया गया कि
गांव छोड़ कर नहीं जाना है. अब गांव वाले उसे कुछ खाने पहनने को दे देते हैं.
अब वो गांव में ही रहता है. माथे पर काला टीका आज भी लगाता है. लोगों
के खेत से आलू चुरा कर बेच देता. अपने बाप के राशन कार्ड की फोटो कॉपी 20 – 25 रुपए
में बेच देता है. लोग उस फोटो कॉपी से सिमकार्ड ख़रीद लेते हैं. कभी कुछ पैसे कहीं
से किसी तरह मिल जाएं तो पूराना मोबाईल ख़रीद लाता है. उसमें गाने सुनता है. जुआ खेलता
है. हमेशा हारता है.
अब वो 13 साल का है. कभी-कभी स्कूल चला जाता है. उसे देखते ही टीचर्स नाक भौं सिकोड़ लेते
हैं. सरकार की तरफ़ से जो मुफ़्त किताबें और कपड़े मिलते हैं वो अरुण को दे दिए जाते
हैं. अरुण उन्हें सस्ते दामों में कहीं बेच देता है. उसके बाद टीचर्स
उम्मीद करते हैं कि अब ये कभी स्कूल ना आए. लेकिन तीन चार महिने में वो फिर आ जाता है.
फिर से उसे जल्दी से किताबें कपड़े दे दिए जाते हैं और कहा जाता है कि अब मत आना.
ये स्कूल बरेली के सरकारी स्कूलों में आदर्श स्कूल माना जाता है. सुमन ये सब तमाशा
देखती रहती है.
पागल बाप गांव में इधर-उधर घूमता रहता है. कोई कुछ दे देता है तो खा
लेता है. कमोबेश यही हाल दूसरे भाई का भी है.
एक दफ़ा सुमन बस स्टॉप पर खड़ी थी. एक बाईक उसके सामने से गुज़री. बाईक
पर पीछे एक औरत बैठी थी. मुंह कपड़े से पूरी तरह ढका हुआ था. लेकिन बाईक लौट कर आई.
औरत उतरी और सुमन की तरफ़ बढी. उसने मुंह से कपड़ा हटाया. वह मीना थी.
“नमस्ते दीदी”
सुमन कुछ असहज हुई. लेकिन फिर भी नमस्ते का जवाब देते हुए पूछ लिया “कैसी
हो?”
“अच्छी हूं. अब इनके साथ रहती हूं.” बाईक चलाने वाले आदमी की तरफ़ इशारा
करते हुए मीना ने बताया. सुमन ने उस आदमी की ओर देखना ज़रूरी नहीं समझा.
“ये बहुत अच्छे हैं.” मीना ने बोलना जारी रखा. “ बड़ी बेटी की शादी कर
दी है. छोटी मेरे साथ रहती है.”
मुंह पर वापस दुप्पट्टा बांधते हुए मीना ने कहा,
“किसी को बताना मत, मैं आपसे मिली थी.”
मीना चली गई.
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