Sunday, 21 October 2012
Sunday, 20 May 2012
हेल्लो दोस्त
मै जिस building मे रहता हू , उसी building मे एक बच्ची रहती है. छोटी सी बच्ची है शायद ढाई तीन साल की. कुछ दिन पहले मैने उसे पहली बार देखा था सांवला रंग , आकर्षक आंखे और सर पर कोई बाल नहीं. जब भी देखता था हमेशा दौडती और उछलती हुई दिखाई देती थी. मुझे उसका नाम नही पता लेकिन जब भी उसे देखता था हमेशा चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती थी. मै जब भी उसके पास से गुज़रता था उसके सिर पर हाथ फेर देता था. और अजीब बात ये है कि वो कभी मेरी तरफ मुड कर नही देखती थी. ना जाने किन ख्यालो मे हमेशा गुम रहती थी कि उसने कभी ये भी गौर नही किया कि कोई उसके सिर पर हाथ फेर कर जा रहा है. उसका मेरी तरफ ना देखना मुझे और प्यारा लगता था और मै हमेशा उसके सिर पर ये सोच कर हाथ फेरता था कि क्या आज ये मुझे notice करेगी ? और एक दिन उसने मुझे notice किया. मैने उसके सिर पर हाथ फेरा और उसने मुझे बहुत हैरानी से देखा. उसके बाद वो मुझे पहचानने लगी. फिर एक बार वो मुझे सीढीयो मे मिली और हमेशा की तरह मैने उसके साथ खेलने की कोशिश की. लेकिन इस बार उसने मुझे बहुत गुस्से से देखा. मुझे उसका गुस्सा भी बहुत cute लगा. अगली बार वो मुझे मिली तो मुझसे शरमा गई. मेरे सामने से भाग खडी हुई और एक दीवार की आड मे जाकर मुझे छुप कर देखने लगी. जब उसने देखा कि मै अब भी उसकी तरफ देख रहा था तो शरमा कर फिर छिप गई. मैने उस से बडा प्यार से कहा “ हेल्लो दोस्त “ . उसने जवाब नही दिया और ज़्यादा शरमा गई. मुझे लगा कि शायद अब मेरी इस से दोस्ती हो जाएगी. उसने शायद अपने दोस्तो को भी मेरे बारे मे बता दिया था. क्युंकि अब मै कही आस पास से गुज़रता तो वो और उसके दोस्त मेरी तरफ देखने लगते थे. मै मुस्कुराता हुआ वहा से निकल जाता.
आज रात को घर आते आते एक बज गया. इस वक्त मे मै उसके दिखने की कोई उम्मीद नही कर रहा था. बल्कि मै उसके बारे मे सोच भी नही रहा था. सीढिया चढते हुए अचानक first floor के turn पर मेरी नज़र रुक गई. सीढियो के पास वाले flat के सामने ही वो वो बच्ची बैठी थी. मै उसे देख कर एक पल के लिए रुक गया. उसके साथ ही उसकी मा और उसकी बडी बहन भी बैठी थी. उसकी मा की गोद मे एक छोटा सा बच्चा था. उसकी 7 या 8 साल की बडी बहन की पीठ मेरी तरफ थी. उसकी मा ने मेरी तरफ एक बार नज़र उठा कर देखा. उसकी आंखो मे आसू नही थे. कोई भाव नही था. रात को एक बजे घर के बाहर तीन छोटे बच्चो को लेकर बैठी मुश्किल से 25 साल की औरत की आंखो मे अगर कोई भाव नही है तो साफ है कि उसके साथ ऐसा पहली बार नही हो रहा था. सब कुछ समझने मे मुझे दो second लगे. उस छोटी सी बच्ची ने जैसे ही मेरी तरफ देखा , उसकी नज़रे मुझे पहचान गई. वो दुखी नही थी , चुप थी. आराम से अपनी मा के साथ बैठी थी. उसकी आंखो ने जैसे देखते ही मुझसे कहा “ हेल्लो दोस्त “ . मेरी आंखो मे उसकी हेल्लो का कोई जवाब नही था. मै सीढीया उपर चढने लगा और जब तक उस बच्ची की आंखो से ओझल नही हो गया वो मुझे देखती रही. मै उसकी तरफ देख नही पा रहा था.
मेरे room mate ने मुझे बताया कि इसका बाप अक्सर इन्हे घर से बाहर निकाल कर दरवाज़ा बन्द करके सो जाता है.
मै कभी वो मासूम आंखे नही भूल पाउंगा जो मुझे देख रही थी. वो बच्ची मुझे आज के बाद भी मिलेगी. उसी बेफिक्री और मस्ती से खेलती हुई. लेकिन मै उसे अब उस तरह नही देख पाउंगा जैसे अब तक देखता आया था. शायद अब मेरी आंखे जब उसे “ हेल्लो दोस्त “ कहे तो उनमे वो बेफिक्री ना हो.
Sunday, 13 May 2012
अब तुम ....
अब तुम बिलकुल बच्ची हो गयी हो
गुलाबी रंग की फ्रॉक पहने
छोटे छोटे कदमो से
ज़िन्दगी के आँगन में
इधर उधर फुदकती हुई खेल रही हो
तुम्हारे आँगन में पडी
धुप में चमकने वाली कोई चीज़ ,
जिसका नाम तक तुम नहीं जानती ,
तुम्हे भा गयी है
उठा कर कभी ,
मुंह में डालने की कोशिश करती हो
दीवार पर पड़ने वाली
उसकी नकली चमक को पकड़ने में दिन बीत जाते हैं तुम्हारे
कभी वो तुम्हारी छाती से लगकर
तुम्हारी मासूम नींद का हिस्सा बन जाती है ,
और कभी तुम्हारे हाथों की मज़बूत पकड़ से
तुम्हारे प्यार के आकार में ढल जाती है
कोई और ले ले उसे , या छू भी ले
तो आसमान फट जाता है
और कभी फेंक कर दूर कहीं
कोई तितली पकड़ने लगती हो
इस चीज़ ने तुम्हे
हंसना सिखा दिया है
इस चीज़ ने
तुम्हे ज़िद्दी बना दिया है
धुप में चमकने वाली इस चीज़ को पाकर
तुम बिलकुल एक छोटी सी बच्ची हो गयी हो
लेकिन
वक्त बीतेगा और तुम बड़ी हो जाओगी ,
देहरी के दूसरी ओर
जहाँ ज़िंदगी की सड़क अलग होगी
और तमाम रंगों की सुन्दर चीज़ें मिलेंगी ,
कच्चे आँगन में
धुप में चमकने वाली चीज़ से खेलना
तुम्हे याद आएगा
Wednesday, 15 February 2012
आँगन में बैठी थोड़ी सी धूप
मेरे हाथ में कुछ मिठाई थी और मै अपनी दादी के सामने खड़ा था. मैंने दादी को मिठाई दी तो दादी बहुत खुश हुई , ये ख़ुशी सामान्य से अधिक थी. मुझे ढेरों आशीर्वाद भी दिए. दादी एक छोटी सी चारपाई पर घर के आँगन में बैठी धूप सेक रही है. मै दादी के सामने बैठ गया हूँ. और दादी को ध्यान से देख रहा हूँ. ज़रा सी मिठाई से दादी इतना खुश हो गयी ! इतना खुश ? कुछ मिठाई भर ही तो है , ये तो दिन में कितनी बार दादी खा लेती है. फिर आज क्यूँ इस मिठाई ने इतनी ख़ुशी दे दी. दादी के सामने बैठा मै ये सब सोच रहा हूँ और दादी मुझे आशीर्वाद दिए जा रही है.
दादी के मुंह में अब एक भी दांत नहीं है. पिछली बार देखा था तो कुछ दांत थे. दादी के चेहरे पर अब सिर्फ दो निशान बचे हैं. वहां कभी ऑंखें रही होंगी, एक जोड़ा सुन्दर ऑंखें जिनमे खुशियाँ छलकती होंगी , आंसू आते होंगे , परेशानियाँ , उम्मीदें दिखती होंगी. अब बस दो निशान हैं. इन दो निशानों में , मै कितना धुंधला या कितना साफ़ दिखाई दे रहा हूँगा , इसका भी मै अंदाज़ा नहीं लगा सकता. लेकिन इतना जानता हूँ, कि मेरी आँखों में दादी की तस्वीर अब बदल चुकी है. पिछली बार देखा था तो दादी का रंग सोने जैसा था. इस बार देख रहा हूँ तो ये सुनहरी चेहरा ढल चुका है. और सर पर कुछ सफ़ेद बाल. मैंने ना जाने कब से अपने ज़हन में बनी दादी की इस तस्वीर को अपडेट नहीं किया था. आज देख रहा हूँ तो इस सुनहरी और ढले हुए चेहरे के दरमयान आया कोई पड़ाव याद नहीं आता. इस थोड़ी सी मिठाई को लेकर दादी की आवाज़ में आई ख़ुशी की वजह शायद सिर्फ इतनी है कि मै दादी के पास आया हूँ. प्यार से दादी मुझसे पूछती है कि मै कितने दिन रहूँगा. ये सवाल पिछले तीन दिन में दादी मुझसे कई बार पूछ चुकी है. मै हर बार दादी को याद दिलाता हूँ कि मै कौन हूँ और कितने दिन के लिए आया हूँ. दादी हर बार ये जान कर नयी तरह से खुश हो जाती है कि मै घर आया हूँ ,और हर बार ये जान कर दुखी हो जाती है कि मै कुछ ही दिनों में फिर से चला जाऊंगा. इस छोटी होती दुनिया में , मै और दादी इतना दूर हो गए कि ना तो दादी ने मुझे बड़े होते ठीक से देखा और ना मैंने दादी को बूढ़े होते. दादी ने अपनी कल्पनाओं में मुझे बड़ा होते देख लिया होगा , और जब भी देखा होगा ढेरों आशीर्वाद और मेरी कामयाबी के लिए दुआएं दी होंगी.
अब भी मै कुछ ही देर में दादी के पास से उठ कर चला जाऊंगा. दादी अपने आप ही कुछ देर तक बोलती रहेगी. फिर अपने बुढापे और अकेलेपन को कोसती हुई भगवान से झगडती रहेगी. उस झगडे की आवाजें भी मेरे कानों में पड़ेंगी. लेकिन मै उठ कर वापस दादी के पास नहीं जाऊंगा. उनके और भगवान् के झगडे के बीच नहीं आऊंगा . क्यूंकि दोनों में से कोई मेरी बात समझता नहीं है. दादी के इस झगडे की आवाजें सिर्फ मेरे ही नहीं सबके कान में जाती हैं. सब इस झगडे से परेशान हैं. सब गुस्सा करते हैं , irritate होते हैं और दादी को समझाते भी हैं. लेकिन दादी को अगर अपना बेटा याद नहीं रहता तो किसी का समझाना क्या याद रहेगा ?
तेज़ धुप से मै अन्दर आ गया हूँ. दादी वहीँ बैठी रहेगी. जाए भी कहाँ ? अपने कमरे में ? या उठ कर घर के गेट तक? लेकिन वहां से भी वापस यहीं आना है. वहां करने को कुछ नहीं है , सोचने को कुछ नहीं है. यहाँ बैठना तो एक काम है. धुप सेकना,,,,,,,,, एक काम है.
लेकिन मै जानता हूँ ये धूप ढल जाएगी. और यहाँ सिर्फ अँधेरा रह जाएगा. इस चारपाई पर बचा, थोडा सा अँधेरा. वो अँधेरा किसी को आशीर्वाद नहीं देगा. भगवान् से झगडेगा नहीं. उस थोड़े से अँधेरे को टटोलते हुए शायद मै यही सोचूंगा , यहाँ कभी मौजूद रही रौशनी की मेरे पास कोई याद भी बाकी नहीं है.
Wednesday, 11 January 2012
एक दिन और
एक दिन और
बुलाती रही मै,
आवाज़ दी मगर
पुकारा नहीं
एक दिन और
चिढाती रही देहरी
टिकी हुई थी जिस से , पर
तू आया नहीं
एक दिन और
ढलती गई मोम सी,
आग ने छूकर जिसे,
जलाया नहीं
एक दिन और
सूनी रही खूबसूरती ,
निहारती रही मुझे ,
पास बुलाया नहीं
एक दिन और
इंतज़ार जिया तेरा ,
तेरे बिन अब एक पल
गुज़ारा नहीं
By ... उषा
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