मैं ये नहीं चाहता ,
ये रिश्ता खुरदुरा हो जाये
लगे चुभने चाँद आँखों में
ख्वाब पूरा हो जाये
नमक आँखों में टपके,
जज़्बात बर्फ रह जाये
गर्म साहिल, दरिया का,
अब्र राख बरसाए
याद में नश्तर से जैसे
ज़हन में खून टपकाए
मुझे मंज़ूर है मेरे दोस्त ,
जो हम कभी न मिल पाए
mujhe achi lagi
ReplyDeletemujhe bhi
ReplyDelete