ताश के पत्तों का एक घर हो गया हूँ
हर रोज़
एक एक पत्ता
संभाल संभाल कर
एक ऊपर एक
डरता डरता रखता हूँ
एक एक पत्ता मुट्ठी भींचे खड़ा रहता है
ऊँगली टकरा गयी कोई,
या सांस भी छू गयी
तो बिखर जाऊंगा
मौसम को थामे
वक्त दबा कर
लफ़्ज़ों को बांधे
के कुछ भी बदला
तो गिर जाऊंगा
सूरज ढलते ढलते
जब संभलता सा लगता है कुछ..
कहीं से एक झोंका आता है तेरी याद का
और ढह जाता हूँ ........
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